Saturday, April 3, 2010

रिबई पंडो की जुबान और भूख से मौत



उमर तकरीबन ८० साल, ज़र्ज़र शरीर, अनपढ़ इतना कि अंगूठा छापगरीबी इतनी कि बहू और पोता भूख से मर गए इन सब के ठीक विपरीत एक खासियत भी थी रिबई पंडो में जो अच्छे -अच्छे ज़वां-मर्दों, पढ़े -लिखे लोगों से लेकर लखपति-करोड़पति हस्तियों में भी कुछ कम ही देखने -सुनने को मिलती है ज़ुबान के मामले में एक नंबर का पक्का था वो सरगुजा जिला मुख्यालय यानी अम्बिकापुर से करीब १५० किलोमीटर दूर एक छोटी पहाडी में बसे बीजाकुरा गाँव के इस बुजुर्ग से ज़ब फरवरी १९९२ में पहली बार मेरी मुलाक़ात हुई, उसका बूढा शरीर बुखार की मार से काँप रहा था। अलबत्ता, उसने सरगुजिहा बोली में अपने बहू और पोते की भूख से मौत होने की जानकारी कुछ इतने सधे हुए और स्पष्ट रूप से दी कि एकबारगी तो मैं उसका मुंह देखता रह गया लेकिन उसके चेहरे पर तो कोई बेचारगी के भाव थे, ही किसी तरह की चालबाजी के बुढापे में अपनी पीढी ही खत्म हो जाने के दुःख से स्थायी तौर पर सपाट सा हो गया था उसका चेहरा। विदाई लेने से ठीक पहले मैंने चेताया था कि वह कितनी गंभीर बात बोल रहा ये भी कहा था कि एक-दो दिन बाद उसकी ये सारी बात ज़ब अखबार में छपेगी तो बड़े -बड़े साहब लोग यहाँ आकर उससे पूछताछ करेंगे। जवाब में उसने कहा - जब मैं सच बोल रहा   हूँ तो डरना क्या? मैं अपनी बात से भला क्यों पल्टूंगा?
   
और जैसा कि मैंने पहले  भी बताया था ,समाचार के छपते ही तत्कालीन प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने उसी दिन इस मुद्दे को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए विधानसभा के समूचे सत्र का बहिष्कार कर दिया। जहां तक मुझे याद पङता है वो संभवतः सत्र का पहला ही दिन था। दूसरी ओर सरगुजा  

जिला प्रशासन के आला अफसरों सहित कांग्रेस भाजपा जिला स्तर के नेताओं की गाड़ियां भी उसी दिन से  बीजाकुरा की ओर दौड़ने लगी मेरे सहित अन्य अखबारों के प्रतिनिधि भी दौड़े प्रशासन और भाजपा नेताओं ने जहां भूख से मौत का खंडन किया वहीं कांग्रेस ने इसे सही बताया आरोप -प्रत्यारोपों से  अखबार रंगने लगे आगे ये मुद्दा तब और गरमा गया जब नेता प्रतिपक्ष श्यामाचरण शुक्ला और मोतीलाल वोरा एक साथ बीजाकुरा जा पहुंचे बीजाकुरा पहुँचने के पहले ही रास्ते में पड़ने वाले गोंव -गाँव में लोग उन्हें  घेर-घेरअपनी व्यथा बता रहे थे!  लोग इस इलाके में भयानक अकाल होने और काम के अभाव में भूख मरने  की फ़रियाद  कर रहे थे | बड़ा हृदयविदारक दृश्य था | लोग रो रहे, गिडगिड़ा रहे थे| नेताओं से अपनी बात पहले कहने के लिए एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे| ये सब देखकर श्री शुक्ल और वोरा द्रवित हुए बिना नहीं रह सके| उन्होंने कुछ रोते कलपते लोगों को रूपये  भी बांटे| इसी बीच एक वृद्धा  ने उन्हें बताया इस दुनिया में उसका कोई नहीं है और वह भूखों मर रही है| उसने कहा मेरे पास आज का खाने के लिए भी कुछ नहीं है| मौके पर मौजूद कलेक्टर टी एस छतवाल को लगा नेताओं से सौ - दो सौ रुपयों की मदद मिलने की लालच में वृद्धा बढ़ा - चढ़ा कर बात कर रही है? उन्होंने श्री शुक्ल के मुखातिब होते हुए कहा भी कि ये लोग सब बढ़ा-चढ़ा कर अकाल का रोना रो रहे हैं| अपनी बात को सही साबित करने के लिए श्री छतवाल ने आगे ये भी कहा - इस वृद्धा का घर यहीं बाजू में है| आईये वहां चल कर वस्तुस्थिति  का पता कर लेते हैं| इसी के साथ सब लोग वृद्धा के  घर की ओर चल पड़े| वो एक ही कमरे का घर था| श्रीशुक्ल, वोरा, छतवाल समेत घर के अन्दर घुसने में बमुश्किल सफल हुए पांच- सात लोगों में एक मैं भी था|  भीतर एक जर्जर खाट, एक-दो एल्युमिनियम के बर्तन और मिट्टी के तीन घड़ेनुमा पात्र थे| अब आगे दिलो दिमाग को झकझोर देनेवाला एक ऐसा दृश्य सामने आया जैसा दृश्य सृष्टि में आज तक न तो किसी ने देखा होगा, न ही सृष्टि के रहते तक शायद कोई देख पाए| प्रदेश के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी मे खुद कलेक्टर श्रीछतवाल उस कमरे में रखे एक-एक बर्तन की तलाशी ले रहे थे| दो-तीन बर्तनों में जब कुछ न मिला तो झुंझला से गए| आखिर में एक बर्तन में हाथ डालने के बाद उनके चहरे पर कुछ ऐसे भाव आये जैसे उनहोंने कोई बड़ी बाज़ी मार ली हो| वे उस बर्तन को लेकर तेजी से श्रीशुक्ल के पास आये और कहा - देखिये इसमें है अनाज| सबने उस मिट्टी के बर्तन को भारी उत्सुकता से देखा| उसमें मुश्किल से एक मुट्ठी कोदो पडा था| ये सब देख-सुनकर श्री शुक्ल ने कुछ कहा तो नहीं पर श्री छतवाल  को घूरकर जरूर देखा| बेशक उनकी आँखों से आग बरस रही थी|
आज १८ बरस बाद भी इस घटना के एक-एक दृश्य मेरी आँखों के सामने है| एक गरीब विधवा की भूख से अकुलाती आँतों की कराहट को झूठा साबित करने के लिए ली गयी इस तलाशी  को शर्मनाक कहूं, अमानवीयता कहूं या एक हाहाकारी हृदयविदारक घटना, इसे मैं आज इतने वर्षों बाद भी तय नहीं कर सका हूँ. अब तक चोरों, अपराधियों, जमाखोरों या आय से अधिक संपत्ति रखने के मामलों में छापा मारने, तलाशी लेने की बात तो लोगों ने देखी-सुनी है मगर मैं आज तक ये सोच-सोच कर हैरान हूँ कि  एक गरीबन की गरीबी को सरे आम नंगा होते देखने की सज़ा मुझे मेरे किन पापों के लिए झेलनी पडी है? समझ ये भी नहीं आता कि क्या नाम दूं उन पढ़े -लिखे लोगों को जिन्होंने इस घटना को अंजाम देते हुए कोई झिझक महसूस नहीं की?
बहरहाल, बीजाकुरा और उसके आसपास के ग्रामीणों से रूबरू होने के बाद श्रीशुक्ल और वोरा ने भूख से मौत होने की पुष्टि करते हुए प्रदेश सरकार पर संवेदनहीन होने के आरोप लगाए और प्रधानमंत्री से इसकी बर्खास्तगी की मांग की. उन्होंने इलाके में अकाल व भुखमरी की हालात को देखते हुए तत्काल बड़ी संख्या में राहत कार्य शुरू करने की मांग भी की! यहाँ ये याद दिलाना लाजिमी है कि उन दिनों प्रदेश में भाजपा के सुन्दरलाल पटवा की सरकार थी और कांग्रेस के पी.वी.नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे. मार्च १९९२ में हुए श्रीशुक्ल और वोरा के इस दौरे के साथ ही सरगुजा से लेकर भोपाल और दिल्ली तक राजनीतिक व प्रशासनिक माहौल एकदम गरमा गया.  प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के पक्ष-विपक्ष  के नेताओं की आये दिन सरगुजा आवाजाही शुरू हो गयी. उन दिनों टीवी चैनलों की धूम नहीं थी लेकिन रेडियो में  बीबीसी से लेकर वाइस आफ अमेरिका तक ने बीजाकुरा में भूख से हुई मौत की खबर को कवर किया. प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर के बड़े-बड़े समाचारपत्रों व पत्रिकाओं के संवाददाताओं की भीड़ भी बीजाकुरा पहुँचने लगी. इन पत्र-पत्रिकाओं में बीजाकुरा के रिबई पंडो के बहू व नाती की हुई भूख से मौतों व इलाके की सूखाग्रस्त स्थिति समेत कांग्रेस और भाजपा नेताओं के बीच इस मुद्दे को लेकर आरोप-प्रत्यारोपों की खबरें लगभग रोज  सुर्खियाँ बनती रही. इस मामले पर भाजपा सरकार की बर्खास्गी की मांग को लेकर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक इतनी जबरदस्त लाबिंग की कि पटवा सरकार के भंग होने की अटकलों का बाज़ार भी सरगर्म हो गया. कुल मिलाकर २९ फरवरी १९९२ को देशबंधु में भूख से मौत की खबर छपने के बाद करीब ढाई महीने तक इस मुद्दे को लेकर भारी हंगामे की स्थिति  बनी रही. अंतत: मई १९९२ के दूसरे सप्ताह में स्वयं प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को  सरगुजा आना पडा. चूंकि बीजाकुरा गाँव पहाडी पर है और श्रीराव का यान वहां नहीं उतर सकता था इसलिए श्री राव ने पड़ोसी गाँव रमेशपुर(जनकपुर) में इलाके के अकाल पीड़ित ग्रामीणों से चर्चा की और सभा को संबोधित भी किया. अपने भाषण में उनहोंने कहा था-आज में पूरे देश के लिए एक ऐसी खाद्य नीति की घोषणा कर रहा हूँ कि जिससे गोदामों  से निकले हुए अनाज का गरीबों के पेट तक पहुँचना सुनिश्चित हो सकेगा. आज १८ बरस बाद भी देश के एक प्रधानमंत्री द्वारा किया गया वादा किस दयनीय और शर्मनाक हालत में है, ये जगजाहिर है. अलबत्ता, उस दिन भाजपाइयों की जान में जान तब आई जब श्रीराव का भाषण ख़त्म हो गया और उनहोंने प्रदेश सरकार की बर्खास्तगी के मुद्दे पर कुछ नहीं कहा.
रही रिबई पंडो की जुबान की बात,तो इन ढाई महीने के हंगामों के दौरान दर्जनों अफसरों, पक्ष-विपक्ष  के जनप्रतिनिधियों और मीडिया कर्मियों ने रिबई पंडो से बात कर वस्तुस्थिति जानने की कोशिश की और वह सबसे पहले मुझे दिए गए अपने बयान पर हमेशा कायम रहा. कुछ लोगों ने डांटकर तो कुछ ने बहला-फुसलाकर उस पर बयान बदलने के लिए दबाव भी डाला मगर वह टस का मस नहीं हुआ. आखिरकार जब प्रधानमंत्री श्रीराव के बीजाकुरा आने का प्रोग्राम तय हुआ तो शासन-प्रशासन को ये चिंता हुई कि कहीं वह प्रधानमंत्री के सामने भी यही बयान न दे दे? कहा जाता है कि इसी डर से जिला प्रशासन ने उसे बीजाकुरा से अम्बिकापुर लाकर जिला चिकित्सालय में भरती करा दिया. यहाँ दवा-दारू के साथ ही खिला-पिलाकर उसकी भरपूर खातिरदारी भी की जाती रही और (इसके एवज़ में )उससे बयान बदलाने की हरसंभव कोशिश भी की गयी लेकिन वह नहीं डिगा तो नहीं डिगा! आज के इस युग में ज़ब ज़रा -ज़रा सी लालच या डर में बड़े-बड़े लोग अपना बयान बदलने में शर्म महसूस नहीं करते, ऐसे लोगों के बीच रिबई पंडो (जैसा इतना गरीब आदमी जिसके घर में दो-दो लोगों की भूख से मौत हो चुकी थी इसके बाद भी) अपनी जुबान का इतना पक्का निकला कि आज भी उसको याद करते हुए श्रद्धा से सर अपने-आप झुक जाता है.( इसी मामले से जुड़ी  अन्य रोचक  जानकारियाँ अगले अंक में ).

5 comments:

  1. अच्छी रचना। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।

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  2. sachhi aur prennadayak, kahani ke liye dhanyawad.....aasha hai ki aisi aur rachnaye milengi jise padhkar ham charitra nirman kar payenge.......

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  3. बहुत रोचक आदमी की रोचक बात बताई आपने

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  4. अब भी आप कह रहें हैं श्री छतवाल?

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  5. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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