Wednesday, November 11, 2009

छतवाल साहेब और भूख से मौत

बतौर पत्रकार लिखते -पढ़ते तीस बरस हो गए । ..आज ब्लॉग के लिए पहली बार उंगलियाँ चलाने के ठीक पहले सवाल कौंधा कि कहाँ से शुरू करूँ? ज़वाब के लिए ज्यादा मगजमारी नहीं करनी पड़ी । छतवाल साहेब का चेहरा खट से जेहन में पूरे अधिकार के साथ उभर आया । छतवाल साहेब यानी टी एस छतवाल। वर्ष १९९२ में ये सरगुजा जिले के कलेक्टर थे और मैं था वहीं देशबंधु अखबार का ब्यूरो प्रमुख । तारीख थी २७ फरवरी की। छतवाल साहेब ने निजी तौर पर मुझे अपने चैंबर में बुलाया और कहा मैंने सुना है आपको जिले में कहीं भूख से मौत होने की ख़बर मिली है और आप उसे प्रकाशित करने जा रहें हैं ? मैंने कहा -आपने बिल्कुल ठीक सुना है । वाड्रफनगर तहसील के बीजाकुरा गाँव के रिबई पंडो की बहू और पोते की भूख से मौत हुई है । मैं ख़ुद उस गाँव गया था। मैंने रिबई पंडो से विस्तार से बात की है । इसी के साथ मैंने छतवाल साहेब को पूरा ब्यौरा सुनाया। सुनकर वे गंभीर हो गये । कहा -मैं आपको एक विश्वसनीय पत्रकार मानता हूँ और आप जब कह रहें हैं तो ज़रूर कोई न कोई बात होगी। इसी के साथ उन्होंने सवाल दागा और पूछा -क्या आप जानते हैं शासन -प्रशासन में आपके इस ख़बर की कितनी तीखी और गंभीर प्रतिक्रिया हो सकती है? शासन के स्तर पर मेरे ख़िलाफ़ भी कड़ी कार्यवाही हो सकती है ? मैंने कहा -सर ,मुझे मामले की गंभीरता का बड़ी हद तक एहसास है । मैं जानता हूँ कि ऐसी ख़बर पर कलेक्टर पर भी सस्पेंशन की तलवार लटक सकती है ।सुनकर वे कुछ देर मुझे देखते रहे ,फ़िर कहा -यदि वाकई ऐसा कुछ हुआ है तो बड़ी शर्मनाक घटना है । मैं भी जानता हूँ कि इस ख़बर से मुझ पर भी बड़ी आंच आ सकती है मगर मैं ये बिल्कुल नहीं कहूँगा कि आप इसे मत प्रकाशित कीजिये .आप बेहिचक अपना काम कीजिये और मैं देखता हूँ कि मैं उस [रिबई पंडो के ] परिवार के लिए क्या कर सकता हूँ ।
यहाँ मैं ये स्पष्ट कर दूँ कि छतवाल साहेब से मेरी ये बातचीत इतने सहज माहौल में हुई जैसे हम कोई मौसम की बात कर रहें हों । हाँ,चेम्बर से बाहर निकलते-निकलते तक मेरा मन उनके प्रति श्रध्दा से भर चुका था । अगले दिन भूख से मौत की ये ख़बर देशबंधु के बैनर में प्रकाशित हुई और फ़िर तीन महीनों तक राजनीतिक और प्रशासनिक हंगामों का सिलसिला चलता रहा । प्रदेश की तत्कालिन प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने तो इस मुद्दे को लेकर उसी दिन विधानसभा के समूचे सत्र का बहिष्कार कर दिया । इन सब के बाद भी छतवाल साहेब और मेरे संबंध यथावत बने रहे । हंगामों के उस दौर की कहानी अगले अंक में।
बतौर पत्रकार लिखते -पढ़ते तीस बरस हो गए ,आज ब्लॉग के लिए पहली बार उंगलियाँ चलाने के ठीक पहले सवाल कौंधा कि कहाँ से शुरू करूँज़वाब के लिए ज्यादा मगजमारी नहीं करनी पड़ीछतवाल साहेब का चेहरा खट से जेहन में पूरे अधिकार के साथ उभर आयाछतवाल साहेब यानी टी.एस छतवाल। वर्ष १९९२ में ये सरगुजा जिले के कलेक्टर थे और मैं था वहीं देशबंधु अखबार का ब्यूरो प्रमुखतारीख थी २७ फरवरी की। छतवाल साहेब ने निजी तौर पर मुझे अपने चैंबर में बुलाया और कहा मैंने सुना है आपको जिले में कहीं भूख से मौत होने की ख़बर मिली है और आप उसे प्रकाशित करने जा रहें हैं ?मैंने कहा -आपने बिल्कुल ठीक सुना हैवाड्रफनगर तहसील के बीजाकुरा गाँव के रिबई पंडो के बहू और पोते की भूख से मौत हुई है .मैं ख़ुद उस गाँव गया थामैंने रिबई पंडो से विस्तार से बात की है .इसी के साथ मैंने छतवाल साहेब को पूरा ब्यौरा सुनायासुनकर वे गंभीर हो गये .कहा -मैं आपको एक विश्वसनीय पत्रकार मानता हूँ और आप जब कह रहें हैं तो ज़रूर कोई कोई बात होगी .इसी के साथ उन्होंने सवाल दगा और पूछा -क्या आप जानते हैं शासन -प्रशासन में आपके इस ख़बर की कितनी तीखी और गंभीर प्रतिक्रिया हो सकती हैशासन के स्तर पर मेरे ख़िलाफ़ भी कड़ी कार्यवाही हो सकती है.मैंने कहा -सर ,मुझे मामले की गंभीरता का बड़ी हद तक एहसास है और में जानता हूँ कि ऐसी ख़बर पर कलेक्टर पर भी सस्पेंशन की तलवार लटक सकती है .सुनकर वे कुछ देर मुझे देखते रहे ,फ़िर कहा -यदि वाकई ऐसा कुछ हुआ है तो बड़ी शर्मनाक घटना हैमैं भी जानता हूँ कि इस ख़बर से मुझ पर भी बड़ी आंच सकती है मगर मैं ये बिल्कुल नहीं कहूँगा कि आप इसे मत प्रकाशित कीजिये .आप बेहिचक अपना काम कीजिये और मैं देखता हूँ कि मैं उस [रिबई पंडो के ] परिवार के लिए क्या कर सकता हूँ

यहाँ मैं ये स्पष्ट कर दूँ कि छतवाल साहेब से मेरी ये बातचीत इतने सहज माहौल में हुई जैसे हम कोई मौसम ki

Tuesday, November 10, 2009

Aaj Jaana Blog Kyaa Cheez hai

ब्लोग्स आज तक सिर्फ़ पढ़ता था, अब लिखना सीख गया हूँ। जल्द ही अपनी लेखनी की अधूरी रह गई प्यास के साथ यहाँ हाज़िर मिलूंगा।
कौशल मिश्रा.