Friday, June 11, 2010

Bhopal Gais Kand Banam Bofors

भोपाल गैस त्रासदी के आरोपी एंडरसन को गैरकानूनी तरीके से भारत से भगाने का मामला जिस तरह तूल पकड़  d रहा है उसे देखते हुए लगता है कि कांग्रेस के लिए ये दूसरा बोफोर्स कांड ना बन जाए ...इसमें दो मत नहीं कि हजारों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार इस शख्स को भगाने में भूमिका निभाने वाले सारे लोगों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए और इस मामले की समय-सीमा में सुनवाई ख़त्म करने के लिए विशेष अदालत गठित होना चाहिए..

Monday, June 7, 2010

Ye Kaisaa Nyaay

दिसंबर १९८४ में हुयी थी भोपाल गैस त्रासदी ..आज जून २०१० में इसका अदालती फैसला आया है ...हजारों लोगों की मौत से जुड़े इस मामले में आरोपियों को आज सादे २५ साल बाद महज़ दो-दो साल की सज़ा और जुर्माने हुए हैं ...अगर यही न्याय है तो अन्याय किसे कहते हैं ?

Friday, May 28, 2010

Maanyataa Medikal Kaalejon Kee

एमसीआई द्वारा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और जगदलपुर  मेडिकल कालेजों की मान्यता समाप्त कर दी गयी..इन्हें  ऐन -केन-प्रकारेण  कथित  रूप  से  मान्यता  दिलाने  वाले  प्रदेश  के  आला  अफसर  और  नेता  आज   इस  खबर  का  खुलासा  होने  के  बाद  चौकने या  ताज्जुब  जताने  का  दिखावा  भले  ही  करें  मगर  इसमें  ऐसा  कुछ भी  नहीं  हुआ  है  कि  जिसे  हैरत-अंगेज़  कहा  जा  सके ..सच  तो  ये  है  कि  नया  छत्तीसगढ़  राज्य  बनने  के  बाद  कांग्रेस  शासनकाल  में  बिलासपुर  और  भाजपा  शासनकाल  में  जगदलपुर  में  मेडिकल  कालेजों  की  स्थापना  का  स्वागतेय  कदम  तो  उठाया  गया  लेकिन  मेडिकल  कालेजों  को  वैधानिक  मान्यता  देने  के  लिए  तय  मापदंडों  व  शर्तों  को  पूरा  करने  में  बुरी  तरह  नाकाम  भी  रहे ..दूसरी ओर  अपनी  इस  असफलता  को  छुपाने  के  लिए  ऐसे - ऐसे  फर्जी  तिकड़म  अपनाए  गए  कि  ठग  सम्राट  नटवरलाल  भी  इन्हें  देख -सुनकर  शर्मा  जाए ..खासकर , मान्यता  पाने  के  लिए  जरूरी  लेक्चररों   व  प्रोफेसरों आदि  की  फर्जी  नियुक्तियां  इतनी  बेशर्मी  से  की  गयी  कि  जिसकी  मिसाल  देने  के  लिए  मुझे  कोई  शब्द ,कोई  विशेषण  तक  नहीं  सूझ  पा रहा  है ..
ख्याल रहे, नए मेडिकल कालेजों को  मान्यता निर्धारित मापदंडों को पूरा करने के आधार पर दी जाती है ..इन मापदंडों में अध्ययन-अध्यापन के लिए पर्याप्त जगह,टीचिंग-स्टाफ,उपकरण आदि की उपलब्धता सहित मरीजों के इलाज़ की समुचित व्यवस्था होने सहित अनेक शर्तें शामिल हैं..छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कांग्रेस शासनकाल में बिलासपुर में मेडिकल कालेज की स्थापना की घोषणा के साथ ही इन तमाम व्यवस्थाओं के लिए खुले हाथ से फंड भी मुहैया कराये गए ..इन करोड़ों रूपयों के सदुपयोग और दुरूपयोग के किस्से समय-समय पर सुर्खियाँ बनते रहे ..अलबत्ता, इसे प्रथम वर्ष के लिए मान्यता देने से लेकर साल-दर- साल  साल अपग्रेड व नवीनीकरण करने के पूर्व 
जब-जब भी एमसीआई की टीम आई ,बिलासपुर से लेकर रायपुर तक के आला अफसरों के हाथ-पाँव फूलते रहे .. मापदंडों को पूरा नहीं कर पाना और मान्यता खतरे में पड़ने की आशंका इसका कारण बनती रही..सियासी नज़रिए से मान्यता पाने से लेकर आगे भी उसे बरकरार रखने का ये मुद्दा चूंकि सत्तारुद पार्टी के प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहा ,लिहाजा राज्य सरकार ने भी अपनी और से कोई कोर-कसर नहीं छोडी..मापदंडों को पूरा करने में कमी सामने आने पर शासन स्तर पर अपनी जमानत तक दी..इस तरह ले-देकर हर साल मान्यता की गाडी आगे घिसटती रही..यहाँ ये बताना लाजिमी है कि मान्यता के नाम पर भवन निर्माण ,पुस्तकों और चिकित्सा उपकरणों की खरीदी आदि में अफसरों ने जहां जबरदस्त रुचि ली ..जबकि छात्रों को पदाने के लिए प्राध्यापकों का जुगाड़ करने जैसे सबसे महत्वपूर्ण काम को पूरा करने में वे तब से आज तारीख तक असफल ही साबित होते रहे..एमसीआई  की जांच टीम के सामने इस कमी को छुपाने की साज़िश के तहत इधर-उधर के चिकित्सकों को दो-चार दिन के लिए नियुक्ति देकर काम चलाते रहे...इस तरह अफसरों की लाज तो किसी तरह बचती रही लेकिन मेडिकल छात्रों को पदाने के लिए कम से कम चालीस फीसदी प्राध्यापकों की कमी हमेशा बनी रही..इसी बीच छात्रों की तीन बेच डाक्टर बनाकर निकल भी गयी पर प्राध्यापकों की कमी बनी की बनी रही ..प्राध्यापकों की इस भारी कमी के बीच मेडिकल की पदाई अधकचरे  दंग से पूरा करनेवाले ये डाक्टर अब जिन्दगी भर हजारों-हजार मरीजों का कितना और कैसा इलाज़ कर पाएंगे इस अहम् सवाल का जवाब आज कहीं से मिलता नहीं दिखता..इन मरीजों को होने वाले शारीरिक,आर्थिक और मानसिक नुकसानों  का आकलन कौन और कैसे करेगा ..उन्हें इस नुकसान का मुआवजा किस जनम में मिल सकेगा..फर्जी तौर पर मापदंड पूरा करने की साज़िश करके ऐन-केन-प्रकारेण मान्यता हथियाना क्या जुर्म नहीं है ..किसे मिलनी चाहिए इस जुर्म की सज़ा..कोई भी सभ्य समाज इन सवालों से मुंह कैसे फेर सकता है..यहाँ ये बता दें कि मौजूदा भाजपा शासनकाल में जगदलपुर में मेडिकल कालेज का मान्यता पाने के लिए बिलासपुर जैसी तिकड़मों को अपनाया गया था ..इसी सत्र से पचास सीटों पर भर्ती की इजाज़त भी पा ली थी ..ये तो भला हो नई एमसीआई  समिति का कि जिसने बिलासपुर के साथ ही  जगदलपुर की मान्यता खत्म करके अधकचरे डाक्टरों की और नई पौध के ऊगने का रास्ता ही बंद कर दिया.
बेशक,इन दोनों मेडिकल कालेजों की मान्यता की समाप्ति के इस ताजे फैसले को छत्तीसगढ़ के हितों के विपरीत बताने वालों की तादाद भी कम नहीं होगी ..संयोग से आज ही पीएमटी का नतीज़ा भी निकला है और इन्हीं मेडिकल कालेजों में पदकर अपना भविष्य संवारने का सपना देखनेवाले छात्रों को भारी मायूसी होगी..लेकिन प्रश्न ये भी है ऐसे कालेजों से निकलनेवाले गुनवत्ताविहीन डाक्टर कल जब हमारा इलाज़ करेंगे तब हम पर क्या बीतेगी.ये शासन की जवाबदारी है वह केवल राजनीतिक वाहवाही लूटने के नाम पर नए-नए मेडिकल कालेज खोलने का ऐलान  करने की जगह पहले मौजूदा कालेजों की मान्यताओं के लिए तय मापदंडों को  ईमानदारी से पूरा करे और सही अर्थों में मरीजों की सेवा कर सकने योग्य अच्छे डाक्टर समाज को दे.. 

Thursday, May 27, 2010

BECHAARAA KAANOON

अपराधियों को अदालतों से सज़ा दिलाने की मौजूदा व्यवस्था के पीछे उद्देश्य क्या है और किस हद तक इन उद्देश्यों की पूर्ति हो पा रही है ,रोज़मर्रा की ज़िंदगी में नज़र आने वाली वारदातों के आईने में आज यह एक ऐसे अहम् सवाल के बतौर सामने है कि इससे मुंह चुराने का मतलब खुद को धोखा देने के अलावा और कुछ नहीं होगा . क़ानून के पंडित इस बारे में भले ही चाहे जितने विस्तार से ब्योरा दें,मुझ जैसे आम लोग तो यही मानते हैं कि लोग सज़ा पाने के डर से गैरकानूनी काम  करने से भी डरें,जिससे समाज में कम से कम अपराध हो और लोग भयमुक्त माहौल में अमन-चैन से जीवनयापन कर सकें,यही उद्देश्य है . युगों-युगों से इसी तरह के उद्देश्यों को लेकर जुर्मों के लिए सज़ा देने की व्यवस्था लागू है . ये अलग बात है कि इसके बाद भी ना केवल अपराध हो रहे हैं बल्कि दिन पर दिन बढते भी जा रहे हैं.
क़ानून,अपराध,सज़ा और उसके उद्देश्यों के चौराहे पर खड़े मुझ जैसे आम आदमी के लिए हाल में हुई दो विरोधाभाषी घटनाएँ दिमाग चकरा देने की हद तक अवाक कर देने के लिए काफी है .पहली घटना हरियाणा की है,जहां नाबालिग टेनिस खिलाड़ी रूचिका के साथ छेड़छाड़ के जुर्म में प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौर को पूर्व में दी गयी छः माह की सज़ा की अवधि को बढाकर सत्र न्यायालय ने डेढ़ वर्ष करते हुए जेल भेज दिया .आरोप है कि अपने साथ हुई इस बदसलूकी का प्रतिरोध करने और न्याय के लिए संघर्ष करने से नाराज होकर राठौर ने रूचिका व उसके परिवारवालों को इस कदर प्रताड़ित किया कि घबराई रूचिका खुदकुशी कर बैठी.राठौर के खिलाफ  ये मामला अभी अदालत में लंबित है.बहरहाल छेड़खानी मामले में स्वर्गीय रूचिका के परिवारवालों को वारदात के बीस साल बाद न्याय मिल सका था .देश भर के न्यूज़-चैनल्स दो दिनों तक दिन-रात इस खबर को दिखाते रहे.अखबार भी पीछे नहीं रहे.निचोड़ में मीडिया ने यही सन्देश देने की कोशिश की कि न्याय के घर देर भले हो पर अंधेर नहीं है और अपराधी चाहे पुलिस विभाग का ही बड़ा से बड़ा अफसर क्यों ना हो,क़ानून की नज़र से नहीं बच सकता .
कुल मिलाकर बड़े जोर-शोर से ये उम्मीद जताई गयी कि डीजीपी राठौर को मिली सज़ा से समाज में एक सार्थक सन्देश जाएगा और खुद को तोपचंद समझनेवाले आला अफसर अपनी मनमानियों से बाज़ आयेंगे .अलबत्ता,राठौर को सज़ा मिलने के महज़ दो दिन बाद ये उम्मीदें किस कदर चकनाचूर हुई है ये बताने के लिए सिर्फ एक उदाहरण देना काफी है .आज २७ मई की सबसे हृदयविदारक खबर ये है कि मध्यप्रदेश के छतरपुर जिला मुख्यालय की पुलिस के दो सिपाहियों की प्रताड़ना से तंग आकर दो युवा सगी बहनों ने आत्महत्या कर ली.सिपाहियों ने डरा-धमकाकर उनकी अश्लील एमएमएस बना ली थी और शारीरिक शोषण के लिए प्रताड़ित कर रहे थे.मामले की शिकायत एसपी से भी की गयी थी .पुलिस प्रशासन का दावा है कि शिकायत पर दोनों पुलिसवालों को निलंबित कर दिया गया था .यदि इस दावे को सही माने तो निलंबन के बाद भी प्रताड़ना का दौर इस कदर जारी रहा कि दोनों बहनों ने घबराकर खुदकुशी कर ली.अब पुलिस जांच-जांच का खेल खेल रही है.हरियाणा में डीजीपी  राठौर को सज़ा मिलने और इसके देश भर में प्रचार होने के महज दो दिन बाद सामने आई ये वारदात क्या ये साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं कि क़ानून  के मौजूदा प्रावधान अपराध रोकने या कम करने के अपने उद्देश्य को पूरा करने के आईने में नाकाफी है.

Friday, May 21, 2010

Shantee Yaa Sannaata

खुद को सबसे बढ़िया कहने वाले छत्तीसगढ़-राज में हाल में  हुई दो घटनाएँ आँखें खोल देने वाली है.ये दोनों ही घटनाएँ दुर्ग जिले की है और दोनों का संबंध साहू समाज से है .पहली घटना जिले के गुरूर थाना क्षेत्र के चिरकारी गाँव की है .यहाँ के मनोहर की शादी करीब २५ साल पहले हुई थी .उसके चार बच्चे भी हैं .इन्हीं में से एक उसकी बेटी की हाल में शादी क्या हुई,मनोहर और उसके परिवार पर दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा.दरअसल बेटी के विवाह समारोह के दौरान ये बात सामने आई कि मनोहर और उसकी पत्नी का गोत्र एक ही है इसी आधार पर समाज के लोगों ने कहा कि सगोत्रीय होने के कारण मनोहर और उसकी पत्नी के बीच सिर्फ भाई-बहन का संबंध हो सकता है .समाज ने इसी के साथ उनके २५ वर्ष से जारी वैवाहिक संबंध को ही अवैध करार दे दिया .ये मुद्दा आखिर उस दुखद मोड़ तक जा पहुंचा कि मनोहर की पत्नी को  ग्लानिवश आत्महत्या का रास्ता चुनना पड़ गया .
दूसरी घटना में दुर्ग जिले के और साहू समाज के ही एक युवक व उसके परिवार को इसलिए जात से बाहर कर दिया गया  कि उसने पिता की मौत होने पर अपना सर नहीं मुडवाया.इस युवक का उद्देश्य सिर्फ इतना था कि वह इस अनावश्यक परंपरा और अंधविश्वास के खिलाफ एक मिसाल पेश कर सके.
इन दोनों वारदातों के उजागर होने के बाद भी प्रदेश की किसी पार्टी,किसी नेता या किसी सामाजिक संस्था ने पीड़ितों को न्याय और दोषियों को सजा दिलाने के नाम पर कोई आवाज़ नहीं उठाई है...वाकई कितना बढिया,कितना शांतिप्रिय प्रदेश है अपना ..सवाल ये है कि यदि इसी का नाम शांति है तो सन्नाटा किसे कहते हैं ?

Thursday, May 20, 2010

Poora Taalab Hee Gandaa Hai

खबर छपी है कि १९ मई को एंटी करप्शन ब्यूरो ने बिलासपुर के अपर कलेक्टर के स्टेनो को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा है.इस सफल कार्यवाही से जुड़े अफसरों को बधाई.सच ये भी है कि सरकारी दफ्तरों में घूस लेना-देना दूध में पानी की मिलावट की तरह अघोषित मगर सर्वमान्य क़ानून-सा बन चुका है .क्या प्रदेश के  किसी  मंत्री या आला अफसर में छाती ठोंककर ये कहने का साहस है कि कि अमुक विभाग के अमुक शहर में स्थित आफिस में बिना कुछ लिए-दिए कोई काम समय पर हो जाएगा.ज़ाहिर है कि पूरा तालाब ही गंदा है .नेता किसी भी पार्टी के हों,उन्हें ये गन्दगी तभी तक नज़र आती है जब तक वे विपक्ष में रहते हैं .सत्ता में आते ही उन्हीँ बदनाम अफसरों और कर्मियों से उनका प्रेमालाप देखते ही बनता है .इन हालातों में घूस लेने के लिए कभी-कभार इक्का-दुक्का लोगों के पकडे जाने की खबर पाकर दिमाग में पहली प्रतिक्रिया यही उभरती है कि बिचारे का बेड लक चल रहा होगा ..ये भी ख्याल आता है कि किसी मंत्री या बड़े अफसर से जाने-अनजाने में पंगा मोल लेने की बेवकूफी कर दी होगी ..बरसों से यही सब चल रहा है ..और कब तक जारी रहेगा कौन जाने.स्वामी रामदेव कहते हैं कि वे भ्रष्टाचार -मुक्त भारत के लिए अगले चुनावों से साफ़-सुधरे चरित्र वालों को जन प्रतिनिधि बनाने की मुहिम चला रहे हैं..स्वामीजी की नीयत पर संदेह तो नहीं है लेकिन सौ टके का सवाल ये भी है कि वे ऐसे साफ़-सुधरे लोग पायेंगे कहाँ से ...

Friday, May 14, 2010

Aadamee Aur Kutta

ज़रुरत इस बात पर ईमानदारी से विचार करने की है कि किसी आदमी को कुत्ता कहने का मतलब उस आदमी को गाली देना है या उसकी तारीफ़ करना..ज़वाब इस सवाल का भी उतनी ही ईमानदारी से तलाशना वक्त की मांग है कि ऐसा कहने के पीछे कहीं कुत्तों को गाली देने की नीयत तो नहीं है ..खासकर जब किसी सियासती शख्सियत को कुत्ता कहा जाए तब तो इस पर और भी संजीदगी से ख्याल करना ज़रूरी लगता है ..और क्यों न हो,आखिर कुत्ता एक वफादार प्राणी है ..इतना वफादार कि इस मायने में उसकी बराबरी करने वाला कोई जीव पूरे  ब्रम्हाण्ड में याद नहीं आता..हजारों किस्से- कहानियां गवाह हैं कि कुत्ता चाहे किसी गरीब आदमी का हो या महाराज युधिष्ठिर का,अंतिम दम तक समर्पित रहने के मामले में उसकी कोई सानी नहीं ..ये सब मेरी निजी सोच या राय नहीं बल्कि एक ऐसा तथ्य है जिसे समूची दुनिया जानती है.. दुनिया को  ये भी अच्छी तरह मालूम  है कि इसी वफादारी और समर्पण के आईने में अधिकतर आदमियों ,खासकर सियासतदानों के चेहरे कितने बदरंग नज़र आते हैं..इन असलियतों,इन सच्चाइयों पर गौर करते हुए अपनी छाती पर हाथ रखकर हर कोई खुद विचार करे कि किसी आदमी को कुत्ता कहना उस शख्स को गाली देना है या समूची कुत्ता जाति को..आरएसएस की अंगुलियाँ के सहारे  रातोंरात भाजपा के अध्यक्ष बनकर देश की राष्ट्रीय राजनीति का अभी ककहरा सीख रहे नितिन गडकरी को अपनी पार्टी का चिंतन शिविर बुलाकर इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए और शायद तभी उन्हें इस सत्य से साक्षात्कार हो पायेगा कि अपनी गलती के लिए दरअसल उन्हें माफी तो कुत्तों से मांगनी चाहिए ..कुत्ता जैसा कहने के लिए गडकरी को गरिया रहे सियासत में परिवारवाद के पोषक बन चुके लालू और मुलायमसिंह यादव भी इस सच को स्वीकार कर सकें तो वे गुस्से में अपना खून जलाने की गलती को सुधार  सकते हैं...

Thursday, May 6, 2010

Kasaab Aur Khushaboo

क्रूर भेड़ियों   की संख्या दिन पर दिन इस  दुनिया  में  चाहे  जितनी  भी  बदती  जा  रही  हों , क्षमा ,स्नेह  और  करुणा  के  नए -नए  फूलों  का  उतनी  ही  मासूमियत  मगर  आत्मविश्वास  के  साथ  खिलना  भी  आज  बदस्तूर  जारी  है .
मुम्बई  हमले  में  अजमल  कसाब  की  गोलियों  से छलनी  अपने  पति  और  बेटी  को  हमेशा -हमेशा  के  लिए  खो  चुकी  अमेरिकी  महिला  शीर ने इसे साबित भी  किया  है .कल  छः  मई  को  अदालत  कसाब  को  उसके  करतूतों  की  सज़ा  सुनाएगी  और  उसके  खिलाफ  साबित  जुर्मों  को  देखते  हुए  ये  तय  सा  माना  जा  रहा  है  कि  अदालत  उसे  मौत  की  ही  सज़ा  सुनाएगी ..मीडिया  के  ज़रिये  देश  भर  के  हजारों  लोग  उसे  फांसी   की  सज़ा  देने  की  मांग भी  कर  रहें  हैं .इनमें  वे  लोग  भी  शामिल  हैं  जिनने  अपने  परिवार  के  करीबी  सदस्यों  को  खोने  का  दर्द  सहा  है .
इन  सबसे  अलग , अमेरिकन  महिला  शीर  ने  पीटीआई  को  ई - मेल  भेजकर  कसाब को  फांसी  नहीं  देने  की  गुजारिश  की  है .नवभारत  टाइम्स   में   छपे  इस  बयान  में  उसने  कसाब  को  उम्र  कैद  की  सज़ा  देने  की  मांग  की  है .शीर  ने  कसाब  के  पुनर्वास  और  शिक्षा  देने  का  समर्थन  भी  किया  है ..
बेशक , शीर  का  ये  बयान   मन  की  आख़िरी  परतों  तक  एक  निर्दोष रूहानी   खुशबू  के  अहसास  को   भर  देने  वाला  है ..उनकी  इन  भावनाओं ...इन  संवेदनाओं  को  मेरा  सलाम ..यहाँ  मैं  साफ़  कर  दूं  कि  मेरा  मकसद  कसाब  को  फांसी  देने  या  ना  देने  के  बहस  में  पड़ना  नहीं  है  बल्कि  शीर  को  उनके  इस  बयान  के  लिए  शुक्रिया  जताना  है  जिसे  पदकर मैं  अपने  भीतर  उस  खूबसूरत  खुशबू  को  पूरे  अपनेपन  के  साथ  पसरते  हुए  महसूस  कर  सका .(इसे मैंने लिखा तो पांच मई को था मगर तकनीकी कारणों से उसी दिन पोस्ट नहीं कर सका और अगले दिन पोस्ट किया ).S

Wednesday, April 28, 2010

Samarpan

कुछ  ऐसी  
कशिश  है 
तेरे  इंतज़ार  में  .
डर  लगता  है
अब  तो     
 कहीं  आ ही  न  जाओ  तुम  .

अब हम कहाँ रहे हम
हम तुममें खो चुके हैं
जब खुद को दूंद लोगे
तब हमको पाओगे तुम  .

Sunday, April 25, 2010

Mahangaayee Ka Kotaa

आज दोपहर की ही बात है .
किसी ने दरवाजा खटखटाया .
दरवाज़ा खोलने पर सामने एक भिखारी खड़ा मिला.
मुझे देखते ही उसने कहा-साहब,आठ-दस रूपये  दीजिये ना .
मैंने अब तक भिखारियों को रुपया-आठ आने माँगते देखा-सुना था.लिहाजा,उसकी मांग सुनकर चौक सा गया.कुछ अकबकाये से अंदाज़ में उसे घूर कर देखा कि कहीं वो मज़ाक तो नहीं कर रहा है लेकिन उसके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे.
कुछ और ना सूझने पर मैं उससे पूछ बैठा-क्यों,आठ-दस रुपया क्यों ?
ज़वाब में उसने कहा-देखो न साहब महंगाई कितनी बढ गयी है और फिर आज मेरा मूड भी कुछ ठीक नहीं है.सोच रहा हूँ दो-चार ज़गह से ही अपना कोटा पूरा करके आराम करूंगा.

Wednesday, April 21, 2010

Ravi Mahaaraj Kee Yaad men

नौ अप्रैल की दोपहर सड़क हादसे में रवि महराज का निधन हो गया.न्यूज चैनल पर ये खबर देख-सुनकर एकबारगी स्तब्ध रह गया मैं . रवि महाराज औरों के लिए भले ही सरगुजा जिले के भटगांव  विधानसभा क्षेत्र के विधायक या प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष रहे होंगे मगर मेरे लिए वे एक मित्र थे.एक सच्चे हमदर्द थे मेरे,जिन्हें अपनी हर परेशानियों के दौरान मैंने पूरे खुले मन से अपने साथ पाया.यूं तो सरगुजा जिले में अपनी ११ वर्षीय पत्रकारिता के दौर में मैंने एक तरह से नियम सा बना रखा था कि किसी भी नेता या अफसर से एक हद से ज्यादा नजदीकी न बने.इनसे सम्बन्ध सिर्फ उतना ही रहे जितना खबरों के आदान-प्रदान के हिसाब से जरूरी हो .रिश्तों में किसी के साथ इतनी मिठास या कडुवाहट न रहे कि जिससे खबरों की निष्पक्षता प्रभावित  हो जाए .कडुवे-मीठे रिश्तों से बचने के इस संकल्प के चलते मुझे कैसे-कैसे कडुवे मीठे अनुभवों से गुज़रना पडा इसके विषय में फिर कभी लिखूंगा,फिलहाल यह स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं कि रवि महाराज ने  पहली बार मिलते ही जैसे अपने साथ बाँध सा लिया मुझको और ११वर्षो  तक हर सुख-दुःख में उनका ये साथ बना रहा.ख़ास बात ये कि इस दौरान वे दो-दो बार जिला भाजपा के महामंत्री और अध्यक्ष  भी रहे,लेकिन अपने किसी भी राजनीतिक क्रियाकलापों के लिए मेरा इस्तेमाल करने की ज़रा भी कोशिश नहीं की.आज के दौर के नेताओं से क्या कोई ऐसी कल्पना भी कर सकता है.बहरहाल दिसबर १९९९ में मेरे सरगुजा छोड़ने के बाद भी मेरा-उनका मेल-जोल बना रहा .अब चूंकि मैं सरगुजा में नहीं था तब जाकर उन्होंने टेलीफोने-मोबाइल  आदि के जरिये मुझसे राजनीतिक मामलों में सलाह-मशविरा करना शुरू किया.मेरी सलाह को वे कितनी गंभीरता से लेते थे इसे स्पष्ट करने के लिए ये एक ही उदाहरण  काफी  होगा .वर्ष  २००९  के विधानसभा  चुनाव  के लिए टिकट  वितरण के लिए जोर -आज़माईश  चल   रहीथी .एकदिन  रवि  महराज  ने  मोबाइल  पर  मुझसे  संपर्क  किया  और  बताया  कि पार्टी  के  कुछ  बड़े  नेता  उन्हें  अंबिकापुर  की  सीट  से  चुनाव  लड़ने  के  लिए  जोर  दे  रहे  हैं .मुझे  क्या  करना  चाहिए .ज़वाब  में  मैंने  उन्हें  कहा -आज  की  स्थिति   में  भाजपा  के  लिए  अंबिकापुर  की  सीट  निकाल  पाना  संभव  नहीं  दिखता.आप  सिर्फ  और  सिर्फ  भटगांव  की  सीट  की  टिकट  पाने  का  प्रयास  कीजिये .मैंने उन्हें  दो टूक  शब्दों  में यहाँ  तक कह  दिया  कि यदि  भटगांव की टिकट  नहीं मिलती  है तो भी अंबिकापुर  या किसी अन्य  सीट  से चुनाव  मत  लडें ..उन्होंने ठीक  ऐसा  ही किया और सौभाग्य  से ना  केवल  उन्हें  भटगांव की टिकट  मिली  बल्कि  वे सम्मानजनक  मतों  के अंतर  से चुनाव  भी जीत  गए .अब सम्भावंनाएं  अपनी दोनों  बाहें  फैलाए  खुद  उन्हें  आतुरता  से पुकार  रही  थी .पिछले  कुछ  दिनों  से रवि महराज  को मंत्रिमंडल  में लिए जाने  या विधानसभा  उपाध्यक्ष  का  पद  सौंपे  जाने  की चर्चा  सरगर्म  थी  कि मौत  ने उन  पर झपट्टा  मार दिया.
अब मैं कभी उनकी मीठी चुटकियाँ नहीं सुन पाऊंगा .उनका खुला अट्ठास अब इस  जीवन  में  मेरे  कानों  से  नहीं टकराएगा  .न ही देख  पाएंगी  अब मेरी  आँखें  उनका चेहरा  .ये  कडुवा  सच  अपनी  जगह  सच है  मगर  सच  ये  भी  है  कि  अब तो  चौबीसों  घंटे  उनका  चेहरा  रह -रह  कर  मेरी  आँखों  के  सामने  उसी  अपनेपन  के  साथ  दमकता  रहता  है . ये  जगजाहिर  है  कि  मौत  ही  हर -एक  की जिन्दगी  का  आख़िरी  सच  है  लेकिन  जब  यादें  बेहद  प्रगाद  हो  जाती  हैं   तो  ये  सच  भी  सच  नहीं  लगता क्योंकि आँखों में hoobahooनाच जाता है उनका जिन्दगी से bharpoor  चेहरा.

Wednesday, April 7, 2010

naxliyon ke naam par raajaneeti

दंतेवाडा जिले के चिंतलनार गाँव के पास हुए नक्सलियों के अब तक के सबसे बड़े हमले का आज तात्कालिक असर ये दिखा कि केन्द्रीय गृह मंत्री पी.चिदंबरम स्वयं पहली बार आज शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने संभाग मुख्यालय जगदलपुर पहुंचे ! पत्रकारों से चर्चा करते हुए यहाँ उन्होंने अगले दो-तीन वर्षों में नक्सली समस्या निपटा देने का वायदा किया! वे अपना ये वादा पूरा कर पायेंगे या नहीं ये तो समय बतायेगा लेकिन यदि इस समस्या पर वाकई इतना लम्बा अरसा लग गया तो प्रदेश के गृह मंत्री ननकी राम कंवर पर मुसीबत जरूर आ सकती है!ख्याल रहे,श्री कंवर ने एक साल के अन्दर नक्सली समस्या निपटाने और इसमें असफल रहने की स्थिति में इस्तीफ़ा देने की घोषणा कर रखी है!इसमें से छः महीने से ज्यादा अरसा बीत भी चुका है!उनसे इस्तीफा माँगने के लिए कांग्रेसी एक साल पूरे होने का एक-एक दिन इंतज़ार कर रहें हैं!फिलहाल,दंतेवाडा जिले में हुई नक्सली वारदात को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए इन कांग्रेसियों ने कल गुरूवार को प्रदेश बंद का आह्वान किया है! अब इन्हें कौन याद दिलाये कि नक्सलियों की मौजूदा हाहाकारी फसल के अंकुरण से लेकर इसे खाद-पानी देकर सींचने का काम तो बरसों तक कांग्रेस शासनकाल में ही होता रहा है!अब वे किस मुंह से उन्हीँ नक्सलियों के नाम से बंद का आयोजन करके रोज कमाने पर ही रोज खा पाने वाले गरीब मजदूरों  की पेट पर लात मारने का सामान कर रहें हैं!

naxlee goliyon ko bulaavaa

नक्सलियों ने फिर एक बार अपने बर्बर मंसूबों को  अंजाम देते हुए उडीसा सीमा से लगे   हुए हमारे छत्तीसगढ़ प्रदेश के  दक्षिण मैं स्थित दंतेवाडा जिले के चिंतलनार क्षेत्र मैं सीआरपीएफ के ७६ जवानों की जान ले ली !पहले और इस ताजे वारदात मैं फर्क ये है कि इसे अब तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला करार दिया जा रहा है !खबर यह भी है कि ये खिताब हासिल करने के लिए कोई नई चाल नहीं चलनी पडी है !कोई नए अंदाज़ में व्यूह रचना बनाकर किसी अप्रत्याशित ढंग से ये खूनी रिकार्ड बनाने में कामयाब नहीं हो गए नक्सली ! वही पुराना तरीका अपनाया कि पहले कुछ गिनती के लोगों पर वार करो,फिर इस वारदात में घायल होनेवाले या मृतकों के आसपास घात लगाकर इनकी मदद के लिए आने वाले जवानों का इंतज़ार करो ! और ज़ब वो आ जाएँ तो उनका भी सफाया कर दो ! अभी नौ महीने पहले यानी जुलाई २००९ में नक्सलियों ने राजनांदगांव जिले के मानपुर थाना क्षेत्र के मदनावाडा  गाँव में पहले शौच के लिए गए दो जवानों को गोली मार दी और बाद में उनकी मदद के लिए पहुंचे राजनांदगांव के एसपी विनोद कुमार चौबे और मोहला थाना प्रभारी विनोद कुमार दृव व एएसआई कोमल साहू समेत ३४ जवानों को घेरकर मार डाला ! हमेशा की तरह इसे नक्सलियों की कायराना हरकत करार देते हुए प्रदेश शासन के अगुवाओं ने संकल्प जताया था कि इन शहीदों की शहादत व्यर्थ नहीं जायेगी और इस वारदात से सबक लेकर उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जायेगी!ख्याल रहे, पिछले दो दशकों से जारी हर नक्सली वारदात के बाद हर बार लगभग यही डायलाग दुहराए जाते रहें हैं लेकिन इस पर अमल क्यों नहीं होता ,कोई नहीं जानता! अलबत्ता ,एसपी श्रीचौबे के रूप में प्रदेश के पहले आईपीएस अफसर की ह्त्या के बाद माना जा रहा था कि प्रदेश सरकार इसे वाकई सबक के रूप में लेगी लेकिन कल दंतेवाडा जिले में फिर लगभग उसी तरह की वारदात से ये ज़ाहिर है कि सरकार की कथनी और करनी में कितना जानलेवा फर्क है !(क्रमश:)
नक्सलियों ने फिर एक बार अपने बर्बर मंसूबों को सफल अंजाम देते हुए उडीसा सीमा से लग हुए  हमारे छत्तीसगढ़ प्रदेश की दक्षिण मैं स्थित दंतेवाडा जिले के चिंतलनार क्षेत्र मैं सीआरपीएफ के ७६ जवानों की जान ले ली !पहले और इस ताजे वारदात मैं फर्क ये है कि इसे अब तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला करार दिया जा रहा है !खबर यह भी है कि ये खिताब हासिल करने के लिए कोई नई चाल नहीं चलनी पडी है !कोई नए अंदाज़ में व्यूह रचना बनाकर किसी अप्रत्याशित ढंग से ये खूनी रिकार्ड बनाने में कामयाब नहीं हो गए नक्सली ! वही पुराना तरीका अपनाया कि पहले कुछ गिनती के लोगों पर वार करो,फिर इस वारदात में घायल होनेवाले या मृतकों के आसपास घात लगाकर इनकी मदद के लिए आने वाले जवानों का इंतज़ार करो ! और ज़ब वो आ जाएँ तो उनका भी सफाया कर दो ! अभी नौ महीने पहले यानी जुलाई २००९ में नक्सलियों ने राजनांदगांव जिले के मानपुर थाना क्षेत्र के मदनावाद्दा गाँव में पहले शौच के लिए गए दो जवानों को गोली मार दी और बाद में उनकी मदद के लिए पहुंचे राजनांदगांव के एसपी विनोद कुमार चौबे और मोहला थाना प्रभारी विनोद कुमार दृव व एएसआई कोमल साहू समेत ३४ जवानों को घेर कर मार डाला ! हमेशा की तरह इसे नक्सलियों की कायराना हरकत करार देते हुए प्रदेश शासन के अगुवाओं ने संकल्प जताया था कि इन शहीदों की शहादत व्यर्थ नहीं जायेगी और इस वारदात से सबक लेकर उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जायेगी!ख्याल रहे पिछले दो दशकों से जारी हर नक्सली वारदात के बाद हर बार लगभग यही डायलाग दुहराए जाते रहें हैं लेकिन इस पर अमल क्यों नहीं होता ,कोई नहीं जानता! अलबत्ता ,एसपी श्रीचौबे के रूप में प्रदेश के पहले आईपीएस अफसर की ह्त्या के बाद माना जा रहा था कि प्रदेश सरकार इसे वाकई सबक के रूप में लेगी लेकिन कल दंतेवाडा जिले में फिर लगभग उसी तरह की वारदात  से    ये ज़ाहिर  है  कि सरकार की कथनी  और करनी में कितना  फर्क  है  !SS

Monday, April 5, 2010

salaam saaniyaa....salaam chainalon

धन्यवाद सानिया ;...बहुत -बहुत धन्यवाद ! एक ही झटके मैं तुमने पूरे देश को सारी समस्याओं से मुक्त कर दिया !गरीबी, भूख, बेकारी ओर अभावों से उपजने वाली तमाम तरह की तकलीफों से सारे हिन्दुस्तान को तुमने निजात दिला दी!महान अर्थशास्त्री होने के बाद भी देश को अभूतपूर्व मंहगाई की आग से बचाने के मामले मैं हमारे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी जहां चारो खाने चित नज़र आ रहे थे वहीं तुमने एक ही दांव मैं इसी महंगाई का देश से नामोनिशान मिटा दिया !अब इन दिनों चारों तरफ तुम्हारे ही नाम का डंका बज़ रहा है ! आज-तक, एनडीटीवी, जी न्यूज़,आईबीएन सेवन,इंडिया टीवी आदि-आदि देश के तमाम टीवी चैनलों मैं बस तुम ही तुम छाई हुई हो!तुम्हारे दमकते चेहरे पर मुग्ध होकर  महाराष्ट्र के किसानों ने भी आत्महत्या करते रहने के अपने अभियान पर फिलहाल रोक लगा दी है 1अब ये लोग तुम्हारी शादी होने के बाद अपने मरते रहने की मुहिम को आगे जारी रखने के बारे मैं सोचेंगे !...ओर अपने होने वाले शौहर को तो देखो!देश-विदेश जा-जाकर जिन्दगी भर चौके_छक्के मारते रहने के बाद भी उसे जितनी पब्लिसिटी नहीं मिली थी उससे सैकड़ों-हजारों गुना ज़्यादा पब्लिसिटी तुम्हारे साथ नाम जुड़ने मात्र से मिल गयी!मुझ कंगाल को भी पहले भूख के चलते रात-रात भर नींद नहीं आती थी मगर तीन-चार दिन पहले जबसे तुम्हारी शादी की चर्चा सामने आई है तबसे हर न्यूज चैनल मैं चौबीसों घंटे तुम्हारी मोहनी सूरत देखते_देखते भूख का ख्याल भी नहीं आता ! आज भी नहीं आ रहा है!उलटे,नींद खूब लग रही है ! कुछ इतनी अधिक बोझिल हो रही हैं पलकें कि पता नहीं सुबह खुल पाएंगी भी या नहीं!आँखें मुंदने से पहले ..सलाम सानिया ....सलाम न्यूज़  चैनलों....सलाम!

Saturday, April 3, 2010

रिबई पंडो की जुबान और भूख से मौत



उमर तकरीबन ८० साल, ज़र्ज़र शरीर, अनपढ़ इतना कि अंगूठा छापगरीबी इतनी कि बहू और पोता भूख से मर गए इन सब के ठीक विपरीत एक खासियत भी थी रिबई पंडो में जो अच्छे -अच्छे ज़वां-मर्दों, पढ़े -लिखे लोगों से लेकर लखपति-करोड़पति हस्तियों में भी कुछ कम ही देखने -सुनने को मिलती है ज़ुबान के मामले में एक नंबर का पक्का था वो सरगुजा जिला मुख्यालय यानी अम्बिकापुर से करीब १५० किलोमीटर दूर एक छोटी पहाडी में बसे बीजाकुरा गाँव के इस बुजुर्ग से ज़ब फरवरी १९९२ में पहली बार मेरी मुलाक़ात हुई, उसका बूढा शरीर बुखार की मार से काँप रहा था। अलबत्ता, उसने सरगुजिहा बोली में अपने बहू और पोते की भूख से मौत होने की जानकारी कुछ इतने सधे हुए और स्पष्ट रूप से दी कि एकबारगी तो मैं उसका मुंह देखता रह गया लेकिन उसके चेहरे पर तो कोई बेचारगी के भाव थे, ही किसी तरह की चालबाजी के बुढापे में अपनी पीढी ही खत्म हो जाने के दुःख से स्थायी तौर पर सपाट सा हो गया था उसका चेहरा। विदाई लेने से ठीक पहले मैंने चेताया था कि वह कितनी गंभीर बात बोल रहा ये भी कहा था कि एक-दो दिन बाद उसकी ये सारी बात ज़ब अखबार में छपेगी तो बड़े -बड़े साहब लोग यहाँ आकर उससे पूछताछ करेंगे। जवाब में उसने कहा - जब मैं सच बोल रहा   हूँ तो डरना क्या? मैं अपनी बात से भला क्यों पल्टूंगा?
   
और जैसा कि मैंने पहले  भी बताया था ,समाचार के छपते ही तत्कालीन प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने उसी दिन इस मुद्दे को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए विधानसभा के समूचे सत्र का बहिष्कार कर दिया। जहां तक मुझे याद पङता है वो संभवतः सत्र का पहला ही दिन था। दूसरी ओर सरगुजा  

जिला प्रशासन के आला अफसरों सहित कांग्रेस भाजपा जिला स्तर के नेताओं की गाड़ियां भी उसी दिन से  बीजाकुरा की ओर दौड़ने लगी मेरे सहित अन्य अखबारों के प्रतिनिधि भी दौड़े प्रशासन और भाजपा नेताओं ने जहां भूख से मौत का खंडन किया वहीं कांग्रेस ने इसे सही बताया आरोप -प्रत्यारोपों से  अखबार रंगने लगे आगे ये मुद्दा तब और गरमा गया जब नेता प्रतिपक्ष श्यामाचरण शुक्ला और मोतीलाल वोरा एक साथ बीजाकुरा जा पहुंचे बीजाकुरा पहुँचने के पहले ही रास्ते में पड़ने वाले गोंव -गाँव में लोग उन्हें  घेर-घेरअपनी व्यथा बता रहे थे!  लोग इस इलाके में भयानक अकाल होने और काम के अभाव में भूख मरने  की फ़रियाद  कर रहे थे | बड़ा हृदयविदारक दृश्य था | लोग रो रहे, गिडगिड़ा रहे थे| नेताओं से अपनी बात पहले कहने के लिए एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे| ये सब देखकर श्री शुक्ल और वोरा द्रवित हुए बिना नहीं रह सके| उन्होंने कुछ रोते कलपते लोगों को रूपये  भी बांटे| इसी बीच एक वृद्धा  ने उन्हें बताया इस दुनिया में उसका कोई नहीं है और वह भूखों मर रही है| उसने कहा मेरे पास आज का खाने के लिए भी कुछ नहीं है| मौके पर मौजूद कलेक्टर टी एस छतवाल को लगा नेताओं से सौ - दो सौ रुपयों की मदद मिलने की लालच में वृद्धा बढ़ा - चढ़ा कर बात कर रही है? उन्होंने श्री शुक्ल के मुखातिब होते हुए कहा भी कि ये लोग सब बढ़ा-चढ़ा कर अकाल का रोना रो रहे हैं| अपनी बात को सही साबित करने के लिए श्री छतवाल ने आगे ये भी कहा - इस वृद्धा का घर यहीं बाजू में है| आईये वहां चल कर वस्तुस्थिति  का पता कर लेते हैं| इसी के साथ सब लोग वृद्धा के  घर की ओर चल पड़े| वो एक ही कमरे का घर था| श्रीशुक्ल, वोरा, छतवाल समेत घर के अन्दर घुसने में बमुश्किल सफल हुए पांच- सात लोगों में एक मैं भी था|  भीतर एक जर्जर खाट, एक-दो एल्युमिनियम के बर्तन और मिट्टी के तीन घड़ेनुमा पात्र थे| अब आगे दिलो दिमाग को झकझोर देनेवाला एक ऐसा दृश्य सामने आया जैसा दृश्य सृष्टि में आज तक न तो किसी ने देखा होगा, न ही सृष्टि के रहते तक शायद कोई देख पाए| प्रदेश के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी मे खुद कलेक्टर श्रीछतवाल उस कमरे में रखे एक-एक बर्तन की तलाशी ले रहे थे| दो-तीन बर्तनों में जब कुछ न मिला तो झुंझला से गए| आखिर में एक बर्तन में हाथ डालने के बाद उनके चहरे पर कुछ ऐसे भाव आये जैसे उनहोंने कोई बड़ी बाज़ी मार ली हो| वे उस बर्तन को लेकर तेजी से श्रीशुक्ल के पास आये और कहा - देखिये इसमें है अनाज| सबने उस मिट्टी के बर्तन को भारी उत्सुकता से देखा| उसमें मुश्किल से एक मुट्ठी कोदो पडा था| ये सब देख-सुनकर श्री शुक्ल ने कुछ कहा तो नहीं पर श्री छतवाल  को घूरकर जरूर देखा| बेशक उनकी आँखों से आग बरस रही थी|
आज १८ बरस बाद भी इस घटना के एक-एक दृश्य मेरी आँखों के सामने है| एक गरीब विधवा की भूख से अकुलाती आँतों की कराहट को झूठा साबित करने के लिए ली गयी इस तलाशी  को शर्मनाक कहूं, अमानवीयता कहूं या एक हाहाकारी हृदयविदारक घटना, इसे मैं आज इतने वर्षों बाद भी तय नहीं कर सका हूँ. अब तक चोरों, अपराधियों, जमाखोरों या आय से अधिक संपत्ति रखने के मामलों में छापा मारने, तलाशी लेने की बात तो लोगों ने देखी-सुनी है मगर मैं आज तक ये सोच-सोच कर हैरान हूँ कि  एक गरीबन की गरीबी को सरे आम नंगा होते देखने की सज़ा मुझे मेरे किन पापों के लिए झेलनी पडी है? समझ ये भी नहीं आता कि क्या नाम दूं उन पढ़े -लिखे लोगों को जिन्होंने इस घटना को अंजाम देते हुए कोई झिझक महसूस नहीं की?
बहरहाल, बीजाकुरा और उसके आसपास के ग्रामीणों से रूबरू होने के बाद श्रीशुक्ल और वोरा ने भूख से मौत होने की पुष्टि करते हुए प्रदेश सरकार पर संवेदनहीन होने के आरोप लगाए और प्रधानमंत्री से इसकी बर्खास्तगी की मांग की. उन्होंने इलाके में अकाल व भुखमरी की हालात को देखते हुए तत्काल बड़ी संख्या में राहत कार्य शुरू करने की मांग भी की! यहाँ ये याद दिलाना लाजिमी है कि उन दिनों प्रदेश में भाजपा के सुन्दरलाल पटवा की सरकार थी और कांग्रेस के पी.वी.नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे. मार्च १९९२ में हुए श्रीशुक्ल और वोरा के इस दौरे के साथ ही सरगुजा से लेकर भोपाल और दिल्ली तक राजनीतिक व प्रशासनिक माहौल एकदम गरमा गया.  प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के पक्ष-विपक्ष  के नेताओं की आये दिन सरगुजा आवाजाही शुरू हो गयी. उन दिनों टीवी चैनलों की धूम नहीं थी लेकिन रेडियो में  बीबीसी से लेकर वाइस आफ अमेरिका तक ने बीजाकुरा में भूख से हुई मौत की खबर को कवर किया. प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर के बड़े-बड़े समाचारपत्रों व पत्रिकाओं के संवाददाताओं की भीड़ भी बीजाकुरा पहुँचने लगी. इन पत्र-पत्रिकाओं में बीजाकुरा के रिबई पंडो के बहू व नाती की हुई भूख से मौतों व इलाके की सूखाग्रस्त स्थिति समेत कांग्रेस और भाजपा नेताओं के बीच इस मुद्दे को लेकर आरोप-प्रत्यारोपों की खबरें लगभग रोज  सुर्खियाँ बनती रही. इस मामले पर भाजपा सरकार की बर्खास्गी की मांग को लेकर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक इतनी जबरदस्त लाबिंग की कि पटवा सरकार के भंग होने की अटकलों का बाज़ार भी सरगर्म हो गया. कुल मिलाकर २९ फरवरी १९९२ को देशबंधु में भूख से मौत की खबर छपने के बाद करीब ढाई महीने तक इस मुद्दे को लेकर भारी हंगामे की स्थिति  बनी रही. अंतत: मई १९९२ के दूसरे सप्ताह में स्वयं प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को  सरगुजा आना पडा. चूंकि बीजाकुरा गाँव पहाडी पर है और श्रीराव का यान वहां नहीं उतर सकता था इसलिए श्री राव ने पड़ोसी गाँव रमेशपुर(जनकपुर) में इलाके के अकाल पीड़ित ग्रामीणों से चर्चा की और सभा को संबोधित भी किया. अपने भाषण में उनहोंने कहा था-आज में पूरे देश के लिए एक ऐसी खाद्य नीति की घोषणा कर रहा हूँ कि जिससे गोदामों  से निकले हुए अनाज का गरीबों के पेट तक पहुँचना सुनिश्चित हो सकेगा. आज १८ बरस बाद भी देश के एक प्रधानमंत्री द्वारा किया गया वादा किस दयनीय और शर्मनाक हालत में है, ये जगजाहिर है. अलबत्ता, उस दिन भाजपाइयों की जान में जान तब आई जब श्रीराव का भाषण ख़त्म हो गया और उनहोंने प्रदेश सरकार की बर्खास्तगी के मुद्दे पर कुछ नहीं कहा.
रही रिबई पंडो की जुबान की बात,तो इन ढाई महीने के हंगामों के दौरान दर्जनों अफसरों, पक्ष-विपक्ष  के जनप्रतिनिधियों और मीडिया कर्मियों ने रिबई पंडो से बात कर वस्तुस्थिति जानने की कोशिश की और वह सबसे पहले मुझे दिए गए अपने बयान पर हमेशा कायम रहा. कुछ लोगों ने डांटकर तो कुछ ने बहला-फुसलाकर उस पर बयान बदलने के लिए दबाव भी डाला मगर वह टस का मस नहीं हुआ. आखिरकार जब प्रधानमंत्री श्रीराव के बीजाकुरा आने का प्रोग्राम तय हुआ तो शासन-प्रशासन को ये चिंता हुई कि कहीं वह प्रधानमंत्री के सामने भी यही बयान न दे दे? कहा जाता है कि इसी डर से जिला प्रशासन ने उसे बीजाकुरा से अम्बिकापुर लाकर जिला चिकित्सालय में भरती करा दिया. यहाँ दवा-दारू के साथ ही खिला-पिलाकर उसकी भरपूर खातिरदारी भी की जाती रही और (इसके एवज़ में )उससे बयान बदलाने की हरसंभव कोशिश भी की गयी लेकिन वह नहीं डिगा तो नहीं डिगा! आज के इस युग में ज़ब ज़रा -ज़रा सी लालच या डर में बड़े-बड़े लोग अपना बयान बदलने में शर्म महसूस नहीं करते, ऐसे लोगों के बीच रिबई पंडो (जैसा इतना गरीब आदमी जिसके घर में दो-दो लोगों की भूख से मौत हो चुकी थी इसके बाद भी) अपनी जुबान का इतना पक्का निकला कि आज भी उसको याद करते हुए श्रद्धा से सर अपने-आप झुक जाता है.( इसी मामले से जुड़ी  अन्य रोचक  जानकारियाँ अगले अंक में ).