Thursday, May 27, 2010

BECHAARAA KAANOON

अपराधियों को अदालतों से सज़ा दिलाने की मौजूदा व्यवस्था के पीछे उद्देश्य क्या है और किस हद तक इन उद्देश्यों की पूर्ति हो पा रही है ,रोज़मर्रा की ज़िंदगी में नज़र आने वाली वारदातों के आईने में आज यह एक ऐसे अहम् सवाल के बतौर सामने है कि इससे मुंह चुराने का मतलब खुद को धोखा देने के अलावा और कुछ नहीं होगा . क़ानून के पंडित इस बारे में भले ही चाहे जितने विस्तार से ब्योरा दें,मुझ जैसे आम लोग तो यही मानते हैं कि लोग सज़ा पाने के डर से गैरकानूनी काम  करने से भी डरें,जिससे समाज में कम से कम अपराध हो और लोग भयमुक्त माहौल में अमन-चैन से जीवनयापन कर सकें,यही उद्देश्य है . युगों-युगों से इसी तरह के उद्देश्यों को लेकर जुर्मों के लिए सज़ा देने की व्यवस्था लागू है . ये अलग बात है कि इसके बाद भी ना केवल अपराध हो रहे हैं बल्कि दिन पर दिन बढते भी जा रहे हैं.
क़ानून,अपराध,सज़ा और उसके उद्देश्यों के चौराहे पर खड़े मुझ जैसे आम आदमी के लिए हाल में हुई दो विरोधाभाषी घटनाएँ दिमाग चकरा देने की हद तक अवाक कर देने के लिए काफी है .पहली घटना हरियाणा की है,जहां नाबालिग टेनिस खिलाड़ी रूचिका के साथ छेड़छाड़ के जुर्म में प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौर को पूर्व में दी गयी छः माह की सज़ा की अवधि को बढाकर सत्र न्यायालय ने डेढ़ वर्ष करते हुए जेल भेज दिया .आरोप है कि अपने साथ हुई इस बदसलूकी का प्रतिरोध करने और न्याय के लिए संघर्ष करने से नाराज होकर राठौर ने रूचिका व उसके परिवारवालों को इस कदर प्रताड़ित किया कि घबराई रूचिका खुदकुशी कर बैठी.राठौर के खिलाफ  ये मामला अभी अदालत में लंबित है.बहरहाल छेड़खानी मामले में स्वर्गीय रूचिका के परिवारवालों को वारदात के बीस साल बाद न्याय मिल सका था .देश भर के न्यूज़-चैनल्स दो दिनों तक दिन-रात इस खबर को दिखाते रहे.अखबार भी पीछे नहीं रहे.निचोड़ में मीडिया ने यही सन्देश देने की कोशिश की कि न्याय के घर देर भले हो पर अंधेर नहीं है और अपराधी चाहे पुलिस विभाग का ही बड़ा से बड़ा अफसर क्यों ना हो,क़ानून की नज़र से नहीं बच सकता .
कुल मिलाकर बड़े जोर-शोर से ये उम्मीद जताई गयी कि डीजीपी राठौर को मिली सज़ा से समाज में एक सार्थक सन्देश जाएगा और खुद को तोपचंद समझनेवाले आला अफसर अपनी मनमानियों से बाज़ आयेंगे .अलबत्ता,राठौर को सज़ा मिलने के महज़ दो दिन बाद ये उम्मीदें किस कदर चकनाचूर हुई है ये बताने के लिए सिर्फ एक उदाहरण देना काफी है .आज २७ मई की सबसे हृदयविदारक खबर ये है कि मध्यप्रदेश के छतरपुर जिला मुख्यालय की पुलिस के दो सिपाहियों की प्रताड़ना से तंग आकर दो युवा सगी बहनों ने आत्महत्या कर ली.सिपाहियों ने डरा-धमकाकर उनकी अश्लील एमएमएस बना ली थी और शारीरिक शोषण के लिए प्रताड़ित कर रहे थे.मामले की शिकायत एसपी से भी की गयी थी .पुलिस प्रशासन का दावा है कि शिकायत पर दोनों पुलिसवालों को निलंबित कर दिया गया था .यदि इस दावे को सही माने तो निलंबन के बाद भी प्रताड़ना का दौर इस कदर जारी रहा कि दोनों बहनों ने घबराकर खुदकुशी कर ली.अब पुलिस जांच-जांच का खेल खेल रही है.हरियाणा में डीजीपी  राठौर को सज़ा मिलने और इसके देश भर में प्रचार होने के महज दो दिन बाद सामने आई ये वारदात क्या ये साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं कि क़ानून  के मौजूदा प्रावधान अपराध रोकने या कम करने के अपने उद्देश्य को पूरा करने के आईने में नाकाफी है.

2 comments:

  1. ...... सार्थक,प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!

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  2. उदय जी से सहमत.

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