नौ अप्रैल की दोपहर सड़क हादसे में रवि महराज का निधन हो गया.न्यूज चैनल पर ये खबर देख-सुनकर एकबारगी स्तब्ध रह गया मैं . रवि महाराज औरों के लिए भले ही सरगुजा जिले के भटगांव विधानसभा क्षेत्र के विधायक या प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष रहे होंगे मगर मेरे लिए वे एक मित्र थे.एक सच्चे हमदर्द थे मेरे,जिन्हें अपनी हर परेशानियों के दौरान मैंने पूरे खुले मन से अपने साथ पाया.यूं तो सरगुजा जिले में अपनी ११ वर्षीय पत्रकारिता के दौर में मैंने एक तरह से नियम सा बना रखा था कि किसी भी नेता या अफसर से एक हद से ज्यादा नजदीकी न बने.इनसे सम्बन्ध सिर्फ उतना ही रहे जितना खबरों के आदान-प्रदान के हिसाब से जरूरी हो .रिश्तों में किसी के साथ इतनी मिठास या कडुवाहट न रहे कि जिससे खबरों की निष्पक्षता प्रभावित हो जाए .कडुवे-मीठे रिश्तों से बचने के इस संकल्प के चलते मुझे कैसे-कैसे कडुवे मीठे अनुभवों से गुज़रना पडा इसके विषय में फिर कभी लिखूंगा,फिलहाल यह स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं कि रवि महाराज ने पहली बार मिलते ही जैसे अपने साथ बाँध सा लिया मुझको और ११वर्षो तक हर सुख-दुःख में उनका ये साथ बना रहा.ख़ास बात ये कि इस दौरान वे दो-दो बार जिला भाजपा के महामंत्री और अध्यक्ष भी रहे,लेकिन अपने किसी भी राजनीतिक क्रियाकलापों के लिए मेरा इस्तेमाल करने की ज़रा भी कोशिश नहीं की.आज के दौर के नेताओं से क्या कोई ऐसी कल्पना भी कर सकता है.बहरहाल दिसबर १९९९ में मेरे सरगुजा छोड़ने के बाद भी मेरा-उनका मेल-जोल बना रहा .अब चूंकि मैं सरगुजा में नहीं था तब जाकर उन्होंने टेलीफोने-मोबाइल आदि के जरिये मुझसे राजनीतिक मामलों में सलाह-मशविरा करना शुरू किया.मेरी सलाह को वे कितनी गंभीरता से लेते थे इसे स्पष्ट करने के लिए ये एक ही उदाहरण काफी होगा .वर्ष २००९ के विधानसभा चुनाव के लिए टिकट वितरण के लिए जोर -आज़माईश चल रहीथी .एकदिन रवि महराज ने मोबाइल पर मुझसे संपर्क किया और बताया कि पार्टी के कुछ बड़े नेता उन्हें अंबिकापुर की सीट से चुनाव लड़ने के लिए जोर दे रहे हैं .मुझे क्या करना चाहिए .ज़वाब में मैंने उन्हें कहा -आज की स्थिति में भाजपा के लिए अंबिकापुर की सीट निकाल पाना संभव नहीं दिखता.आप सिर्फ और सिर्फ भटगांव की सीट की टिकट पाने का प्रयास कीजिये .मैंने उन्हें दो टूक शब्दों में यहाँ तक कह दिया कि यदि भटगांव की टिकट नहीं मिलती है तो भी अंबिकापुर या किसी अन्य सीट से चुनाव मत लडें ..उन्होंने ठीक ऐसा ही किया और सौभाग्य से ना केवल उन्हें भटगांव की टिकट मिली बल्कि वे सम्मानजनक मतों के अंतर से चुनाव भी जीत गए .अब सम्भावंनाएं अपनी दोनों बाहें फैलाए खुद उन्हें आतुरता से पुकार रही थी .पिछले कुछ दिनों से रवि महराज को मंत्रिमंडल में लिए जाने या विधानसभा उपाध्यक्ष का पद सौंपे जाने की चर्चा सरगर्म थी कि मौत ने उन पर झपट्टा मार दिया.
अब मैं कभी उनकी मीठी चुटकियाँ नहीं सुन पाऊंगा .उनका खुला अट्ठास अब इस जीवन में मेरे कानों से नहीं टकराएगा .न ही देख पाएंगी अब मेरी आँखें उनका चेहरा .ये कडुवा सच अपनी जगह सच है मगर सच ये भी है कि अब तो चौबीसों घंटे उनका चेहरा रह -रह कर मेरी आँखों के सामने उसी अपनेपन के साथ दमकता रहता है . ये जगजाहिर है कि मौत ही हर -एक की जिन्दगी का आख़िरी सच है लेकिन जब यादें बेहद प्रगाद हो जाती हैं तो ये सच भी सच नहीं लगता क्योंकि आँखों में hoobahooनाच जाता है उनका जिन्दगी से bharpoor चेहरा.
Wednesday, April 21, 2010
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