आज दोपहर की ही बात है .
किसी ने दरवाजा खटखटाया .
दरवाज़ा खोलने पर सामने एक भिखारी खड़ा मिला.
मुझे देखते ही उसने कहा-साहब,आठ-दस रूपये दीजिये ना .
मैंने अब तक भिखारियों को रुपया-आठ आने माँगते देखा-सुना था.लिहाजा,उसकी मांग सुनकर चौक सा गया.कुछ अकबकाये से अंदाज़ में उसे घूर कर देखा कि कहीं वो मज़ाक तो नहीं कर रहा है लेकिन उसके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे.
कुछ और ना सूझने पर मैं उससे पूछ बैठा-क्यों,आठ-दस रुपया क्यों ?
ज़वाब में उसने कहा-देखो न साहब महंगाई कितनी बढ गयी है और फिर आज मेरा मूड भी कुछ ठीक नहीं है.सोच रहा हूँ दो-चार ज़गह से ही अपना कोटा पूरा करके आराम करूंगा.
Sunday, April 25, 2010
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अब अंदाजा लगायें, बाबूलालों के प्रदेश में विकास कितनी तेजी से हुआ है. हा हा हा.
ReplyDeleteकौशल भाई
ReplyDeleteक्या बात है .... फ़ोटो से पहचान में ही नहीं आ रहे हो ...प्रोफ़ाइल में भी कोई अता-पता दर्ज नहीं है फ़िर भी हम पहचान गये!
...आजकल नीचे से ऊपर तक सभी "कोटा" पूरा करने में लगे हैं... बहुसारे लोग तो कागजों में ही "कोटा" पूरा कर रहे हैं!!
...प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!
श्याम कोरी 'उदय'